अमेरिका और रूस के रुख से घिरा यूक्रेन: क्या सुपरपावर देश बन गए हैं एकजुट?

रूस-यूक्रेन युद्ध को दो साल से ज़्यादा हो गए हैं, लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने इस जंग को नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। अमेरिका ने अचानक यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई रोक दी है, वहीं रूस ने हमले और तेज कर दिए हैं। यह स्थिति देखकर दुनिया भर में यह सवाल उठने लगा है कि क्या दो सबसे बड़े सुपरपावर — अमेरिका और रूस — अब एक ही दिशा में, यूक्रेन के खिलाफ खड़े हो गए हैं? आइए जानते हैं इस घटनाक्रम के पीछे की बड़ी वजहें।

अमेरिका ने क्यों रोकी यूक्रेन को हथियार सप्लाई?

हाल ही में अमेरिका ने यूक्रेन को मिलने वाली महत्वपूर्ण सैन्य सहायता जैसे Patriot मिसाइल सिस्टम, Stinger एयर डिफेंस और अन्य उन्नत हथियारों की डिलीवरी को अचानक रोक दिया है। अमेरिकी रक्षा विभाग (Pentagon) का कहना है कि देश की अपनी सुरक्षा ज़रूरतों को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। अमेरिका अब इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और इज़राइल-ईरान संघर्ष जैसे मोर्चों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहा है। साथ ही, अमेरिका में आगामी राष्ट्रपति चुनावों के चलते विदेश नीति पर ट्रम्प का “America First” अप्रोच भी इसका एक बड़ा कारण है।

रूस ने क्यों तेज़ कर दिए हमले?

जहां एक ओर अमेरिका ने मदद सीमित की, वहीं रूस ने युद्ध के मैदान में आक्रामकता बढ़ा दी है। हाल ही में रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव समेत कई प्रमुख शहरों पर मिसाइल और ड्रोन हमलों की बौछार कर दी। इन हमलों में रूस ने करीब 550 से ज़्यादा मिसाइल और ड्रोन इस्तेमाल किए, जो अब तक का सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है। रूस का यह कदम अमेरिका की अनिच्छा का फायदा उठाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

क्या अमेरिका और रूस एकजुट हो गए हैं यूक्रेन के खिलाफ?

सीधे तौर पर देखा जाए तो अमेरिका और रूस के बीच किसी तरह का औपचारिक समझौता नहीं है। लेकिन जो परिस्थितियाँ बन रही हैं, वे यह संकेत जरूर देती हैं कि दोनों सुपरपावर अपने-अपने हितों को साधते हुए यूक्रेन को अकेला छोड़ने की दिशा में बढ़ रहे हैं। अमेरिका भले ही रूस का विरोध करता हो, लेकिन यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति रोकना एक तरह से अप्रत्यक्ष समर्थन की स्थिति बना देता है।

Trump and Putin
अमेरिका और रूस के रुख से घिरा यूक्रेन

अमेरिका का ध्यान अब चीन और मध्य-पूर्व की ओर

अमेरिका अब अपनी रक्षा नीति में बदलाव करते हुए चीन के बढ़ते प्रभाव और मध्य-पूर्व में ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते तनाव की ओर अधिक ध्यान दे रहा है। अमेरिकी रणनीतिकारों का मानना है कि लंबे समय तक यूक्रेन को मदद देना अमेरिका की सुरक्षा रणनीति को कमजोर कर सकता है। यही वजह है कि अब अमेरिकी नेतृत्व इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को प्राथमिकता देने की बात कर रहा है।

यूक्रेन के लिए क्या बन रही है चुनौती?

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेन्स्की ने अमेरिका के इस फैसले पर नाराजगी जताई है और इसे रूस को सीधा फायदा पहुंचाने वाला बताया है। उनका कहना है कि यदि पश्चिमी देश खासकर अमेरिका, एयर डिफेंस सिस्टम और गोला-बारूद की आपूर्ति नहीं करेंगे तो रूस को यूक्रेन पर कब्ज़ा करने का खुला मौका मिल जाएगा। ज़ेलेन्स्की ने जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों से सहयोग की अपील की है।

रूस को क्या मिल रहा है लाभ?

रूस इस स्थिति का खुला लाभ उठा रहा है। यूक्रेन के पास जब हथियार और डिफेंस सिस्टम की कमी हो रही है, तब रूस ने अपने सैनिकों की संख्या और हमलों की तीव्रता दोनों बढ़ा दी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक रूस ने हाल ही में लुहान्स्क और डोनेट्स्क क्षेत्रों में बड़ा दबाव बनाकर कई इलाकों पर नियंत्रण कर लिया है। यह यूक्रेन के लिए बहुत बड़ा झटका है।

क्या NATO अब भी मदद करेगा?

NATO के कई सदस्य देश अब यूक्रेन की मदद को लेकर दोराहे पर खड़े हैं। अमेरिका की सप्लाई रुकने के बाद जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश ज्यादा जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते। वहीं, अमेरिका का कहना है कि अब यूक्रेन को अपनी सुरक्षा के लिए “अधिक आत्मनिर्भर” होना होगा। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि NATO की एकजुटता भी अब पहले जैसी नहीं रही।

यूक्रेन को क्या करना होगा अब?

अब यूक्रेन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह अपनी सुरक्षा रणनीति को बदलकर, हथियारों का घरेलू उत्पादन बढ़ाए और ऐसे देशों से सहयोग मांगे जो अब तक तटस्थ रहे हैं। साथ ही, रूस के साइबर और मिसाइल हमलों से निपटने के लिए तकनीकी सहयोग भी आवश्यक होगा। यदि यूक्रेन इस स्थिति को सही ढंग से संभालता है तो वह रूस को रोकने की ताकत दिखा सकता है।

निष्कर्ष: यूक्रेन अकेला पड़ता जा रहा है

अमेरिका की हथियार सप्लाई रोकने का फैसला, रूस की बढ़ती आक्रामकता और NATO की ढीली प्रतिक्रिया यह संकेत देती है कि यूक्रेन इस युद्ध में अकेला पड़ता जा रहा है। दोनों सुपरपावर अपनी-अपनी रणनीति से यूक्रेन को दबाव में ला चुके हैं। अगर आने वाले समय में कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप नहीं होता, तो रूस-यूक्रेन युद्ध का स्वरूप पूरी तरह बदल सकता है।

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