पाकिस्तान में तख्तापलट की आहट

पाकिस्तान की सियासत में एक बार फिर उथल-पुथल के संकेत मिल रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि देश में कभी भी फौजी तख्तापलट हो सकता है। हाल ही में सामने आए कुछ बयान और घटनाएं इस आशंका को और भी गहरा कर रही हैं। खासकर सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की भूमिका को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की कुर्सी भी अब सुरक्षित नहीं मानी जा रही है।

बिलावल भुट्टो का विवादित बयान बना सियासी भूचाल का कारण

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो जरदारी के एक बयान ने राजनीतिक पारा बढ़ा दिया है। बिलावल ने हाल ही में भारत को कुछ संदिग्धों के प्रत्यर्पण की बात कही थी, जिसे लेकर विपक्षी दलों ने उन्हें आड़े हाथों लिया। इस बयान को देश विरोधी करार देते हुए कई नेताओं ने यह आरोप लगाया कि बिलावल भारत से दोस्ती कर पाकिस्तान के हितों की अनदेखी कर रहे हैं।

क्या सेना फिर से करेगी हस्तक्षेप?

पाकिस्तान में सेना का राजनीति में दखल कोई नई बात नहीं है। देश का इतिहास रहा है कि जब-जब राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है, तब-तब सेना ने शासन की बागडोर संभाल ली है। मौजूदा हालात को देखते हुए यह आशंका जताई जा रही है कि सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं और सत्ता में सीधा दखल दे सकते हैं।

Bilawal Bhutto
Bilawal Bhutto

राष्ट्रपति जरदारी पर दबाव बढ़ता जा रहा है

राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की स्थिति इस समय बेहद नाजुक मानी जा रही है। विपक्ष के साथ-साथ अब सत्ता पक्ष के कुछ नेता भी उनकी कार्यशैली पर सवाल उठा रहे हैं। सेना के साथ उनकी ट्यूनिंग भी पहले जैसी नहीं दिख रही। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो जरदारी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ सकती है।

विपक्ष ने बिलावल और जरदारी दोनों को घेरा

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने बिलावल के बयान को आधार बनाकर राष्ट्रपति जरदारी को भी आड़े हाथों लिया है। विपक्ष का कहना है कि राष्ट्रपति जरदारी बेटे के विवादित बयानों पर चुप्पी साधे हुए हैं, जो इस बात का संकेत है कि वह भी इस सोच का समर्थन करते हैं। इससे उनकी साख पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी पड़ सकता है असर

बिलावल के बयान से पाकिस्तान और भारत के बीच रिश्तों में नया मोड़ आ सकता है। हालांकि भारत की ओर से अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन पाकिस्तान के आंतरिक हालात यदि और बिगड़े, तो इसका असर क्षेत्रीय स्थिरता पर भी पड़ सकता है। अमेरिका और चीन जैसे बड़े देशों की नजर भी अब पाकिस्तान की इस सियासी हलचल पर है।

जनता की नाराजगी और सेना की बढ़ती लोकप्रियता

पाकिस्तानी जनता में सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ती जा रही है। महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से तंग जनता अब सेना को विकल्प के रूप में देखने लगी है। पिछले कुछ महीनों में सेना की लोकप्रियता में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो तख्तापलट की संभावनाओं को और भी बल देती है।

इतिहास खुद को दोहराएगा?

पाकिस्तान में पहले भी कई बार लोकतांत्रिक सरकारों को गिराकर सेना ने सत्ता संभाली है। जनरल परवेज मुशर्रफ का शासन अभी भी लोगों की यादों में ताजा है। मौजूदा परिस्थितियों में लोग फिर से वही इतिहास दोहराए जाने की आशंका जता रहे हैं। हालांकि अंतरराष्ट्रीय दबाव और लोकतंत्र की मांग को देखते हुए यह इतना आसान नहीं होगा।

निष्कर्ष: कुर्सी डगमगाई, फैसला वक्त करेगा

फिलहाल यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि पाकिस्तान में तख्तापलट निश्चित है, लेकिन हालात जिस तरह बन रहे हैं, उससे यह जरूर कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति जरदारी की कुर्सी खतरे में है। बिलावल के बयान ने आग में घी डालने का काम किया है। अब देखना होगा कि सेना और राजनीतिक दल मिलकर कौन सी दिशा तय करते हैं — लोकतंत्र की राह या तख्तापलट का रास्ता।

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