ब्रिक्स करेंसी की शुरुआत: डॉलर को बड़ा झटका

भारत, चीन, रूस और अन्य ब्रिक्स (BRICS) देशों ने एक साझा करेंसी की दिशा में काम शुरू कर दिया है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी डॉलर की ग्लोबल पकड़ को कम करना है। यह कदम दुनिया की बदलती आर्थिक व्यवस्था को दर्शाता है, जहां अब देश अपनी क्षेत्रीय और वैश्विक लेन-देन में अधिक स्वतंत्रता चाहते हैं।

ब्रिक्स देशों में अब चर्चा इस बात पर हो रही है कि क्या सभी सदस्य देश एक “कॉमन करेंसी” ला सकते हैं जो आपसी व्यापार में डॉलर की जगह ले सके।

क्यों जरूरी हो गई है एक नई वैश्विक मुद्रा?

वर्तमान में दुनिया के ज़्यादातर देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर पर निर्भर हैं। लेकिन डॉलर की मजबूती और अमेरिका की नीतियाँ कई बार छोटे और विकासशील देशों पर नकारात्मक असर डालती हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद रूस जैसे देश अपनी मुद्रा के विकल्प तलाश रहे हैं। इसी तरह चीन और भारत जैसे देश भी चाहते हैं कि व्यापार स्थानीय मुद्राओं में हो जिससे डॉलर पर निर्भरता कम हो।

ब्रिक्स करेंसी की रूपरेखा कैसी हो सकती है?

फिलहाल चर्चा के स्तर पर एक प्रस्तावित नाम “R5 करेंसी” भी सामने आया है, जिसमें ब्राजीलियन रियल, रूसी रूबल, भारतीय रुपया, चीनी युआन और साउथ अफ्रीकन रैंड शामिल हो सकते हैं।

कुछ रिपोर्टों में यह भी बताया गया कि यह करेंसी किसी डिजिटल फॉर्मेट में लाई जा सकती है, ताकि सभी सदस्य देश इसे आसानी से उपयोग कर सकें। हालांकि अभी तक कोई औपचारिक घोषणा या समयसीमा तय नहीं की गई है।

Politician
Launch of BRICS currency: A big blow to the dollar

भारत की भूमिका क्या है?

भारत इस विचार पर पूरी तरह सहमत नहीं दिख रहा है। भारत का मानना है कि अभी साझा करेंसी से ज़्यादा ज़रूरी है कि ब्रिक्स देश आपसी व्यापार में स्थानीय मुद्राओं का इस्तेमाल बढ़ाएं। भारत पहले से ही रूस, बांग्लादेश और कुछ अन्य देशों के साथ रुपया में ट्रेड कर रहा है।

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भारत फिलहाल डिजिटल रुपया (CBDC) और BRICS Pay जैसे प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता दे रहा है, न कि एक नई करेंसी को।

डॉलर को क्या वाकई खतरा है?

दुनियाभर में “डीडॉलराइजेशन” की चर्चा ज़ोर पकड़ रही है, लेकिन फिलहाल अमेरिकी डॉलर की स्थिति इतनी मजबूत है कि एकदम से उसका विकल्प खड़ा करना संभव नहीं है।

हालांकि अगर ब्रिक्स देश आपसी व्यापार में स्थानीय मुद्राओं या साझा करेंसी का प्रयोग सफलतापूर्वक करते हैं, तो भविष्य में डॉलर की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर हो सकती है। खासकर तब, जब अन्य विकासशील देश भी इस पहल में शामिल हो जाएं।

क्या साझा करेंसी बनाना आसान है?

ब्रिक्स करेंसी बनाने में कई चुनौतियाँ हैं। जैसे:

  • सभी देशों की आर्थिक स्थिति अलग-अलग है।
  • राजनीतिक मतभेद अक्सर इन देशों के बीच सामने आते हैं।
  • एक साझा करेंसी के लिए सभी सदस्य देशों को मौद्रिक नीति (monetary policy) साझा करनी होगी, जो किसी भी देश के लिए sovereignty पर असर डाल सकती है।

इसके अलावा, अमेरिका जैसे देशों से भी राजनीतिक दबाव और आर्थिक प्रतिबंधों का खतरा बना रहेगा।

BRICS Pay और डिजिटल लेन-देन की दिशा में अगला कदम

ब्रिक्स देश एक डिजिटल पेमेंट सिस्टम BRICS Pay पर भी काम कर रहे हैं, जिससे सदस्य देश आपस में फास्ट और सुरक्षित लेन-देन कर सकें। इसका उद्देश्य SWIFT जैसे अमेरिकी नियंत्रित नेटवर्क की निर्भरता को कम करना है।

इससे डॉलर की भूमिका को बिना साझा करेंसी लाए भी घटाया जा सकता है।

निष्कर्ष: क्या डॉलर की खैर नहीं?

फिलहाल यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि डॉलर का युग खत्म हो गया है, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि एक नई वैश्विक वित्तीय व्यवस्था की शुरुआत हो चुकी है।

अगर BRICS देश मिलकर साझा करेंसी को सफलतापूर्वक विकसित और लागू कर पाए, तो भविष्य में यह दुनिया की आर्थिक दिशा को पूरी तरह बदल सकती है। भारत, चीन और रूस जैसे देश अब अपनी नीतियों को और ज्यादा आत्मनिर्भर बनाकर चल रहे हैं, और इसका असर आने वाले वर्षों में ज़रूर दिखाई देगा।

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