अमेरिका और चीन के बीच Trade War दोबारा शुरू

अमेरिका और चीन के बीच व्यापार को लेकर चल रहा पुराना विवाद एक बार फिर जोर पकड़ रहा है। साल 2018 से 2020 के बीच जब पहली बार Trade War शुरू हुई थी, तो दुनिया भर की अर्थव्यवस्था हिल गई थी। अब 2025 में फिर से हालात उसी दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं। अमेरिका ने चीन से आने वाले कई उत्पादों पर फिर से Tariff बढ़ा दिए हैं, जिससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव बढ़ गया है।

अमेरिका द्वारा लगाए गए नए Tariff

14 मई 2025 से अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले सैकड़ों उत्पादों पर 30% Tariff लागू कर दिया है। इस नए टैरिफ को तीन भागों में बांटा गया है—10% reciprocal tariff, 20% fentanyl-related duty और पहले से लागू 25% Section 301 tariff का विस्तार। अगर बातचीत से समाधान नहीं निकला तो अगस्त 10 के बाद यह दर 55% या उससे भी अधिक हो सकती है।

India China Trade War
India China Trade War

चीन का जवाबी हमला

चीन ने भी अमेरिका के इस कदम का कड़ा जवाब दिया है। उसने अमेरिका से आने वाले उत्पादों पर 10% से 34% तक के Tariffs लागू कर दिए हैं। इसके साथ ही चीन ने कुछ महत्वपूर्ण कच्चे माल, जैसे rare earth elements के निर्यात पर नियंत्रण लगा दिया है और कुछ अमेरिकी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है। चीन ने World Trade Organization (WTO) में अमेरिका के खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

दोनों देशों के बीच बढ़ते इस तनाव का असर अब Global Economy पर साफ़ दिखाई देने लगा है। इंटरनेशनल मार्केट्स में गिरावट देखी जा रही है, सप्लाई चेन बाधित हो रही हैं और व्यापारिक गतिविधियों में अनिश्चितता बढ़ रही है। अगर Trade War और गहराई तक जाती है, तो इसकी वजह से महंगाई में इजाफा, निर्यात में गिरावट और निवेश में रुकावट आ सकती है।

अमेरिकी कंपनियों की चिंताएं

अमेरिका की कई कंपनियों को चीन में निवेश और उत्पादन में नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। एक सर्वे के अनुसार, लगभग 27% अमेरिकी कंपनियां अब अपने व्यापार को चीन से बाहर शिफ्ट करने पर विचार कर रही हैं। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में लागत बढ़ती जा रही है, विशेषकर स्टील और एल्यूमिनियम जैसे कच्चे माल के क्षेत्र में। कंपनियां इस बढ़ी लागत को अब तक ग्राहकों पर नहीं डाल रही थीं, लेकिन जल्द ही कीमतों में इजाफा हो सकता है।

तकनीकी क्षेत्रों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा

इस बार की Trade War सिर्फ पारंपरिक व्यापार तक सीमित नहीं है। अब यह लड़ाई उन्नत तकनीक जैसे Artificial Intelligence, Biotech और Quantum Computing के क्षेत्र तक पहुँच चुकी है। विशेषज्ञों ने इसे “China Shock 2.0” का नाम दिया है, जिसमें चीन अब टेक्नोलॉजी में अमेरिका को कड़ी टक्कर दे रहा है। अमेरिका के लिए यह केवल व्यापार नहीं, बल्कि रणनीतिक और सुरक्षा का भी मामला बन गया है।

कूटनीतिक प्रयास और बातचीत

हाल के महीनों में अमेरिका और चीन के बीच कई कूटनीतिक बैठकों की खबरें आई हैं। जिनेवा और लंदन में कुछ प्रारंभिक बातचीत हुई जहां अमेरिका ने कुछ Tariffs में अस्थायी राहत दी और चीन ने rare earth की सप्लाई आंशिक रूप से बहाल की। हालांकि, अभी तक कोई ठोस समझौता नहीं हो पाया है। ASEAN सम्मेलन में भी दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने मुलाकात की लेकिन विवाद सुलझता नजर नहीं आ रहा।

WTO और कानूनी प्रक्रिया में हलचल

World Trade Organization (WTO) में अमेरिका के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई है। साथ ही, अमेरिकी अदालतों में भी Tariff लागू करने की प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठ रहे हैं। कुछ न्यायालयों ने इसे आपातकालीन शक्तियों का दुरुपयोग मानते हुए असंवैधानिक बताया है। इससे अमेरिका की नीति पर अंतरराष्ट्रीय और आंतरिक दोनों स्तरों पर दबाव बढ़ गया है।

आने वाले समय में संभावनाएं

अगर अमेरिका और चीन अगस्त 10 तक कोई समाधान नहीं निकालते, तो आने वाले समय में और अधिक क्षेत्रों पर Tariffs लग सकते हैं, जैसे:

  • Semiconductors
  • Pharmaceuticals
  • Consumer electronics

इससे वैश्विक बाजार और ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं और उपभोक्ताओं को महंगे उत्पादों का सामना करना पड़ेगा।

व्यापारियों और निवेशकों के लिए सुझाव

इस परिस्थिति में व्यापारियों को चाहिए कि वे:

  • चीन पर निर्भरता कम करें,
  • वैकल्पिक सप्लाई चेन तैयार करें,
  • भारत या दक्षिण एशिया जैसे देशों में मैन्युफैक्चरिंग पर विचार करें,
  • और लंबे समय की रणनीति तैयार रखें।

निष्कर्ष

अमेरिका और चीन के बीच दोबारा शुरू हुई यह Trade War सिर्फ दो देशों का मामला नहीं है, बल्कि इसका असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। यदि दोनों देश समय रहते समाधान नहीं निकालते हैं, तो यह संकट और भी गहराता जाएगा। व्यापार, निवेश और उपभोक्ताओं—सभी को इसके प्रभाव के लिए तैयार रहना होगा।

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